जय जय जय वंदन भुवन, नंदन गौरी गणेश !
दुख द्वंद्वात फंदन हरन, सुंदर सुवन महेश !!
जयति शँभू सुत गौरी नंदन !
विध्न हरन नासन भव फंदन !!
जय गणनायक जनसुख दायक !
विश्व विनायक बुद्धी विनायक !
दुख द्वंद्वात फंदन हरन, सुंदर सुवन महेश !!
जयति शँभू सुत गौरी नंदन !
विध्न हरन नासन भव फंदन !!
जय गणनायक जनसुख दायक !
विश्व विनायक बुद्धी विनायक !
एक रदन गज बदन विराजत !
वक्तंतुंड शुचि शुंड सुसाजत !!
तिलक त्रिपुण्ड भाल शशी सोहत !
छबि लखी सूर नर मुनि मन मोहत !!
उर मणिमाल सरोरुह लोचन !
रत्न मुकुट सिर सोच विमोचन !!
कर कुठार शुचि सुभग अत्रिशुलम!
मोदक भोग सुगंधित फुलम !!
सुंदर पितांबर तन साजित !
चरण पादुका मुनि मन राजित !!
धनी शिव सुवन भुवन सुख दाता !
गौरी ललन षडानन भ्राता !!
ऋद्धि सिद्धी तव चंवर सुढारहिं!
मूषक वाहन सोहित द्वारहीं !!
तव महिमा को बरनै पारा !
जन्म चरित्र विचित्र तुम्हारा !!
एक असुर शिवरूप बनावै !
गैरिहीं छलन हेतु तहं आवै !!
एहि कारण ते श्री शिव प्यारी !
निज तन मैल मूर्ती रचि दारी !!
सो निज सुत करी गृह रखवारे !
द्वारपाल सम तेहिं बैठारे !!
जबहिं स्वयं श्री शिव तहं आए !
बिनु पाहीचान जान नहीं पाए !!
पुछयो शिव हो किनके लाला !
बोलत भे तुम वाचन रसाला !!
मैं हुं गैरी सुत सुनि लीजै !
आगे पग न भवन हित दीजै !!
आवहिं मातु बुझी तब जाओ !
बालक से जनि बात बढिओ !!
चलन चाहयो शिव बचन न मान्यो !
तब है क्रुद्ध युद्ध तुम ठान्यो !!
तत्क्षण नहीं कछु शंभू बिचारयो !
गही त्रिशूल भूल वश मारयो !!
शिरीष फुल सम सिर कटी गयाउ !
छंट उडी लोप गगन महं भयाउ !!
गयो शंभू जब भवन मंझारी !
जहं बैठी गिरीराज कुमारी !!
पूछे शिव निज मन मुसाकाये !
कहहूसती सुत कहं ते जाये !!
खुलीगे भेद कथा सुनि सारी !
गिरी विकल गिरीराज दुलारी !!
कियो न भल स्वामी अब जाओ !
लाओ शीश जहां ते पाओ !!
चल्यो विषणू संग शिव विन्यानी !
मिल्यो न सो हस्तीहिं सिर आनी !!
धड उपर स्थित कर दिन्ह्ये !
प्राण वायू संचालन किन्ह्ये !!
श्री गणेश तब नाम धरायो !
विधा बुद्धी अमर वर पायो !!
भे प्रभू प्रथम पूज्य सुखदायक !
विध्न विनाशक बुध्दी विधायक !!
प्रथमहिं नाम लेत तव जोई !
जग कहं सकल काज सिध होई !!
सुमिरहीं तुमहिं मिलहिं सुख नाना!
बिनु तव कृपा न कहूँ कल्याना !!
तुम्हारहिं शाप भयो जग अंकित !
भादै चौथ चंद्र अकालंकित !!
जबहीं परीक्षा शिव तुहीं लिनहा !
प्रदक्षिणा पृथ्वी कही दिन्हा !!
षङमुख चल्यो मयूर उडाई !
बैठि रचे तुम सहज उपाई !!
राम नाम मही पर लिखी अंका !
कीन्हा प्रदक्षिण तजी मन शंका !!
श्री पितू मातु चरण धरी लीन्ह्ये !!
पृथ्वी परिक्रमा फल पायो !
अस लखी सुरन सुमन बारसयो !!
सुंदरदास राम के चेरा !
दुर्वासा आश्रम धरी डेरा !!
विरच्यो श्रीगणेश चालीसा!
शिववपुराण वर्णित योगीशा !!
नित्य गजानन जो गुण गावत !
गृह बसी सुमती परम सुख पावत !!
जन धान्य सुवन सुखदायक !
देहिं सकल शुभ श्री गणनायक !!
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धरी ध्यान !
नित नव मंगल मोद लहि, मीलै जगत सम्मान !!
दैव सहस्त्र दस विक्रमी, भाद्र कृष्ण तिथी गंग !
पूरन चालीसा भयो, सुंदर भक्ती अभंग !!
SRV
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