श्री शिव चालीसा
जय गणेश गिरीजा सुवन, मंगल मूल सुजान !
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान !!
जय गिरिजापती दिनदयाला !
सदा करत सन्तन प्रतापला !!
भाल चंद्रमा सोहत नीके !
कानन कुंडल नागफणी के !!
जय गणेश गिरीजा सुवन, मंगल मूल सुजान !
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान !!
जय गिरिजापती दिनदयाला !
सदा करत सन्तन प्रतापला !!
भाल चंद्रमा सोहत नीके !
कानन कुंडल नागफणी के !!
अंग गौर सिर गंग बहाये !
मुंडमाल तन क्षार लगाये !!
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहै !
छवी को देखी नाग मुनि मोहै !!
मैना मातु की हवै दुलारी !
वाम अंग सोहत छवी न्यारी !!
कर त्रिशूल सोहत छवी भारी
करत सदा शत्रून क्षयकारी !!
नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे !
सागर मध्य कमल हैं जैसे !!
कार्तिक श्याम और गणराऊ !
या छवी को कही जात न काऊ !!
देवन जबहीं जाय पुकारा!
तबहीं दुःख प्रभू आप निवारा !!
कियो उपद्रव तारक भारी !
देवन सब मिली तुमहीं जुहारी !!
तुरत षडांन आप पठायउ !
लव निमेष मह मारी गिरायउ !!
आप जलंधर असुर संहार !
सुयश तुम्हार विदित संसारा !!
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई !
सबहीं कृपा करी लिन बचाई !!
किया तपहीं भगीरथ भारी !
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी !!
दानिन महं तुम सम कोई नाहीं !
सेवक स्तुती करत सदाहीं !!
वेद माही महिमा तब गाई !
अकथ अनादी भेद नहीं पाई !
प्रकटी उदधि मंथन ते ज्वाला !
जरत सुरासुर भए विहाला !!
कीन्ह दया तहं करी सहाई !
नीलकंठ तव नाम कहाई !!
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा !
जीत के लंक विभीषण दिन्हा !!
सहस कमल में हो रहे धारी !
कीन्ह परीक्षा तबहीं पुरारी !!
एक कमल प्रभू राखेउ गोई !
कमल नैन पूजन चहं सोई !!
कठीन भक्ती देखी प्रभू शंकर !
भये प्रसन्न दिये इच्छित वर !!
जय जय जय अंनत अविनाशी !
करत कृपा सबके घटवासी !!
दुष्ट सकल नित मोही सतावै !
भ्रमत रहौ मोही चैन न आवै !!
त्राही त्राही मैं नाथ पुकारौ !
यहि अवसर मोहि आन उबारौ !!
ले त्रिशूल शत्रून को मारो !
संकट ते मोहि आन उबारो !!
मात -पिता भ्राता सब होई !
संकट में पुछत नहीं कोई !!
स्वामी एक हैं आस तुम्हारी !
आय हरहू मम संकट भारी !!
धन निर्धन को देत सदाहीं !
जो कोई जांचे सो फल पाहीं!!
अस्तुति केही विधी करौ तुम्हारी !
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी !!
शंकर को संकट के नाशन !
विध्न विनाशन मंगल कारण !!
योगी यती मुनि ध्यान लागावे !
नारद सारद शीश नवावें !!
नमो नमो जय नमः शिवाय !
सूर ब्राह्मदिक पार न पाय !!
जो यह पाठ करे मन लाई !
ता पर होत हैं शम्भू सहाई !!
ऋनिया जो कोई हो अधिकारी !
पाठ करें सो पावनहारी !!
पुत्र होन कर इच्छा कोई !
निश्चय शिव प्रसाद तेही होई !!
पंडित त्रयोदशी को लावै !
ध्यान पूर्वक होम करावै !!
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा !
तन नहीं ताके रहै कलेशा !!
धूप दीप नैवेघ चढावै !
शंकर सम्मुख पाठ सुनावै !!
जन्म जन्म के पाप नसावै !
अंत धाम शिवपूर में पावै !!
कहत अयोध्या आस तुम्हारी !
जानि सकल दुःख हरहू हमारी !!
नित्य नेम कर प्रात हीं पाठ करो चालीसा !
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदिस !!
SRV